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Home Archive for April 2016
नायक सुशील कुमार
उम्र - 22 वर्ष
ब्लड ग्रुप - ओ +
यूनिट - 14 मराठा 

अस्पताल में अपने बिस्तर पर लेटे हुए सुशील की नज़रें अनायास ही अपने बेड के दाहिने छोर पर लगी इस पर्चे पर चली जाती थी । तीन हफ़्ते गुज़र चुके थे लड़ाई को पर उसकी ज़िन्दगी तो अब बस इस बिस्तर तक ही सीमित रह गयी थी । इस जंग ने उससे उसकी आज़ादी छीन ली थी । जंग में गया तो था भारत माँ का एक वीर सपूत था , एक नौजवान जिसकी नसों में देशभक्ति का लावा धधक रहा था , पर जो लौट कर आया वो एक अपाहिज था जिसने जंग तो जीत ली थी पर  किस्मत से हार गया था और धीरे धीरे मौत के आगोश में समाता जा रहा था । 

तीन हफ्तों के बाद भी सुशील इस बात का विश्वास नहीं कर पा रहा था की अब उसकी टाँगे नहीं रहीं । उसके लिए ये सब एक बुरे सपने जैसा था जो ख़तम ही नहीं हो रहा था । उन निर्जीव जाँघों में उसे अभ भी हलचल महसूस हो रही थी । आँखें बता रही थी की अब नहीं हैं तुम्हारे पास पाँव पर उसका दिमाग ये मानने को तैयार नहीं था ।

तभी बेड नंबर 17 को बाहर निकाल जाने लगा । सुशील मुस्कुराया , एक ऐसी मुस्कान जो उसकी किस्मत को ताना मार रही हो की मैं जानता हूँ यह मेरे साथ भी जल्दी ही होगा ।

अगली सुबह बेड नंबर 17 फिर भर चुका था । इस बार उसमें था एक पाकिस्तानी सिपाही , असलम । अपनी प्लाटून का सिर्फ वही एक जीवित सदस्य बचा था । उसके चेहरे पर गोली लगी थी और कमर के नीचे का पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका था । उसे मानवता की बिनाह पर भारत में उपचार के लिए लाया गया था ।
हालाँकि सबके मन में उस मुल्क़ के लिए नफ़रत थी जहां से वो आया था पर हर दिल से उसके लिए दुआ ही निकल रही थी । उसकी इस दशा को देख सबका मन पसीजा था ।
सुशील और असलम एक ही वार्ड में थे । दोनों ही असहनीय दर्द से गुज़रते हुए अपने अपने बिस्तर पर लेटे थे । चूँकि , वार्ड में कुछ ही लोग थे , तो सबको एक दूसरे के होने का आभास था । असलम के बारे में ही ज्य़ादातर बातें होती थी । उसके परिवार के बारे में भी पता लगाने की कोशिश ज़ारी थी । उसकी हालत देख कर हर एक आँख नम थी सिवाय सुशील के । जिसने भी इसका कारण पूंछा तो बड़े रूखेपन से सुशील ने एक ही रटा रटाया जवाब दिया की इसके और इसके देश के कारण ही मैं अपनी सारी ज़िन्दगी अपाहिज रहूँगा या शायद मर भी जाऊं । नहीं , मैं इसे या इसके देश को कभी नहीं माफ़ कर सकता ।

एक और सुबह , एक और ख़ाली बेड । इस बार यह सुशील का था । एक काली सुबह थी वो । अपने साथी को बिछड़ते देख जो चार हफ़्तों तक उनके साथ रहा था , सबका दिल बैठा जा रहा था ।
बाहर बारिश हो रही थी , वैसी नहीं जैसी हमेशा होती है । ऐसा लग रहा था की भगवान भी एक वीर सिपाही की शाहादत का शोक मना रहें हों जिसकी ज़िन्दगी को एक बार फिर शरहदों की जंग ने क्रूरता से छीन लिया हो ।
बाहर टेलीविजनों पर सुशील को वीर चक्र देने की घोषणा हो चुकी थी । नेता उसे देश का वीर सपूत कह रहे थे और उसके नाम पर किसी सड़क का नाम रखने का ऐलान कर रहे थे । विपक्ष की मांग थी कि सड़क नहीं , हवाई अड्डा बने सुशील के नाम पर । 

सुशील और ना जाने कितने की सिपाहियों की जाने ये समझाने में जा चुकी थी कि जंग का परिणाम सिवाय बर्बादी के कुछ नहीं होता । दोनों देश अपनी अपनी तरफ़ युद्ध में विजयी होने का दंभ भर रहे थे ।
सुशील का बेड बाहर निकाला जा रहा था । वो एक सिपाही जिसकी तरफ़ उसने देखा तक नहीं था , उसका सिर भी सुशील के लिए सजदे में झुका  हुआ था और दोनों आँखों से आंसू बह रहे थे। जिस इंसान को देख ऐसा लगता था की वो असलम से नफ़रत करता है , उसने अपनी मृत्यु पर उसे एक ऐसा तोहफ़ा दिया जो हर सरहद को मिटाने में सक्षम है ।  वो तोहफ़ा था प्यार का ।

असलम जी भर के देख लेना चाहता था इस वीर सिपाही को जिसके कारण आज एक बार फिर वो देख पा रहा था । जो अपनी मौत से पहले अपनी दोनों आँखें असलम को दान करने को कह गया । जो मरते मरते भी दुनिया को प्यार का , शान्ति का ,अमन का पैग़ाम दे गया ।
Monument, Statue, Silhouette, Sunset, Sky, Clouds
Pic Courtesy: Pixabay.com
Everything he saw in me made me fall deeper for him for it wasn't mere lust but the beauty of his heart.

How can you not love the eyes so great?

Every word he spoke to me made me fall harder for they weren't just the words but his heart.

How can you not love a heart so pure?

Everything he wrote for me, made me fall again , for they weren't mere thoughts that he penned but the truth of his life.

How can you not love the thoughts so deep?

Every time he held me, it made me fall all over again for him for it wasn't a mere touch but the piousness of his love.

How can you not worship the love so divine?

Every time he confessed his love, it made me fall harder for him for they were not just feelings but his soul put in words.

How can you not love a soul so immaculate?
Apple, Love, Heart
19 फरवरी 2016
प्रिय आलोक ,
जानती हूँ नाराज़ हो । होना भी चाहिए , तुम्हें पूरा हक़ है । इस बार तो कारण  भी है , बिना बताये इतनी दूर जो आगयी हूँ। पर क्या करती ? मज़बूरी थी ।
माना अन्याय किया है तुम्हारे साथ पर मेरा विश्वास करो ,  ऐसा नहीं चाहती थी मैं। तुम्हारे साथ सारी उम्र गुज़ार देना चाहती थी । हर पल , हर लम्हे में बस तुम्हारा साथ ही चाहिए था । यह पत्र लिखना मेरी ज़िन्दगी का सबसे कठिन पल था । जानते हो क्यों ? क्योंकि तुम्हें अलविदा कह रही हूँ । मुझे अंदेशा था की अब शायद जीवित वापस ना आ पाऊं इसलिए वो सब जो शायद तुम्हारे सामने नहीं कह पाती , लिख रही हूँ।
जब आखिरी बार फ़ोन पर बात हुई तो तुम नहीं जानते कितना सुकून मिला था मुझे । एक तसल्ली थी की चैन से जा सकती हूँ अब । समझती हूँ  तुम्हारे दर्द को , जानती हूँ घाव गहरा है । कितना अजीब है ना , मैं जो तुम्हारे दर्द का मरहम थी, वही तुम्हें ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दर्द दे रही हूँ । पर क्या करूँ , तुम्हारी पत्नी होने के साथ साथ मैं एक सिपाही भी हूँ जिसने देश सेवा का प्रण लिया है । जंग में जाने से सिर्फ़ तुम्हारा प्यार ही मुझे रोक रहा है पर प्यार का दूसरा नाम ही त्याग है ।
अब जब की तुम्हें यह पत्र मिल गया है , इसका यही मतलब है कि मैं नहीं रही । और तुम किसी कोने में बैठ कर भगवान को कोस रहे होगे या अपनी किस्मत को ।
पर आलोक , अब इन सब से क्या फ़ायदा ? मैं तो जा चुकी हूँ । इतनी दूर , जहां से मैं चाहकर भी नहीं वापस आ सकती । पर तुम क्यों खुद को तिल तिल मार रहे हो । सिर्फ़ मेरे जाने से ज़िन्दगी ख़तम नहीं हुई । माना तुम्हें गहरा आघात लगा है पर मरहम तो हर दर्द का है । मेरी यादें तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगी पर मैं यह कभी नहीं चाहूंगी कि तुम इनमें पल पल घुटो । मेरा प्यार हमेशा तुम्हारी ताक़त रहा है , अब इसे ऐसी कमज़ोरी ना बनाओ , की तुम जी भी ना पाओ ।
तुम्हें फिर उठाना होगा , चलना होगा ज़िन्दगी के साथ । यूं पीछे नहीं छूट सकते तुम । मेरी हिम्मत हमेशा से तुम ही थे और अब तुम हार नहीं मान सकते । वो सब कुछ करो जो मेरे साथ होने पर करते । अपने सपने , हमारे सपने , माँ बाउजी के सपने , अभी तो कितना कुछ करना है तुम्हें ।
काश यह कह पाती की बाकी बातें अगले पत्र में करुँगी पर शायद यह मौका अब ना मिले । मुझसे इतना प्यार करने के लिए शुक्रिया । इस छोटी ही सही पर , पर खुशहाल ज़िन्दगी में इतना प्यार और सम्मान क लिए धन्यवाद । शब्द नहीं हैं मेरे पास यह बताने को कि कितने मायने थे मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारे ।
आखिर में , यही कहना चाहती हूँ कि अपने दिल में प्यार के लिए दरवाज़े कभी बंद मत करना । फिर से इसे धड़कने की इज़ाज़त देना । मेरे कारण , किसी और को तुमसे प्यार करने से रोकना मत और ना ही खुद रुकना । जानती हूँ  आसन नहीं है पर विश्वास करो , इतना मुश्किल भी नहीं । अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ना । जब कभी पीछे मुड़कर देखोगे , मेरा प्यार हमेशा तुम्हारे साथ होगा ।
तुम्हारी आशिमा
~कंचन

Paper, Texture, Old, Structure, Parchment, Yellow, List
आज जब ऑफिस से घर आई तो थकावट बहुत ज़्यादा थी। ऑफिस में पार्टी थी तो खाना खा कर ही आई थी इसलिए तुरंत अपने कमरे में चली गयी। थोड़ी देर बाद जब पानी पीने बाहर आई तो देखा कि माँ के कमरे की बत्ती बंद है। मैं पानी लेकर बैठक में रखे सोफ़े पर बैठ गयी और टी.वी पर चैनल बदलने लगी कि अचानक मुझे कुछ पुराने दस्तावेज़ ढूंढना याद आया।
मैं स्टोर-रूम की बत्ती जलाकर अन्दर गयी और अपने कागज़ ढूँढने लगी कि तभी मेरी नज़र एक डायरी पर पड़ी।
वो मेरी नहीं थी क्योंकि मैं अपने राज़ किसी से साझा नहीं करती थी, किसी डायरी से भी नहीं। माँ की होगी यह सोच कर फिर मैं अपने काम में लग गयी पर ना जाने क्यों अब मेरा मन वो डायरी पढ़ने के लिए मचल रहा था। हालाँकि मेरी और माँ की कभी बनी नहीं पर आज ना जाने क्यों मैं खुद को उनकी ज़िन्दगी में झाँकने से रोक नहीं पायी। हमारे बीच के रिश्ते में ना जाने कब की तल्ख़ी आ चुकी थी पर आज उन्हें जानने का यह मौका मैं छोड़ना नहीं चाहती थी।
अपने कागज़ों को भूल मैं अपने बिस्तर पर आराम से बैठकर माँ की डायरी पढ़ने लगी।
19 जनवरी 92
आज मुझे सड़क पर एक बच्ची मिली। बहुत ही प्यारी, ना जाने कैसे लोग होंगे जिन्होंने इतनी प्यारी बच्ची को ऐसे छोड़ दिया। मैं उसे पुलिस को दे आई हूँ और उसे गोद लेने के लिये अर्ज़ी भी लगा आई हूँ। अब बस मेरी अर्ज़ी स्वीकार हो जाए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
25 जनवरी 92
आज मेरी नन्हीं परी घर आ गयी। मेरी ज़िन्दगी अब पूरी हो गयी। भगवान मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है अब।
19 जनवरी 94
आज रहम दो साल की हो गयी और आज ही उसने पहली बार मुझे माँ कहा। उसके इस एक शब्द ने मेरे हर एक दुःख-दर्द को ख़त्म कर दिया। आज उसने सही मायने में मुझे पूरा कर दिया।
18 अगस्त 94
रहम बड़ी हो रही है। अब मुझे पैसों की ज़्यादा ज़रूरत पड़ेगी। रहम की अच्छी परवरिश के लिए बहुत पैसे लगेंगे। अब मुझे बहुत मेहनत करनी होगी।
20 जनवरी 96
रहम मेरी ज़िंदगी में नेमत बन कर आई है। उसके आने से सब अच्छा ही हो रहा है। मेरा कारोबार भी अच्छा चल रहा है। अब हमारी ज़िंदगी में बस खुशियाँ होंगी।
1 अप्रैल 98
आज रहम का उस बड़े वाले स्कूल में पहला दिन था। आज से उसकी ज़िंदगी की एक नयी शुरुआत हुई है। भगवान आप अपनी कृपा ऐसे ही बनाए रखना।
16 नवम्बर 2000
काफ़ी दिन बाद लिख रही हूँ। अब फुर्सत ही नहीं मिलती। रहम अब  तीसरी में पढ़ती है। शायद उसे स्कूल में सब मेरे अलग रंग-रूप के लिए चिढ़ाने लगे हैं। लोगों की परवाह नहीं है मुझे बस कहीं ये सब उसे मुझसे दूर ना कर दे। हे भगवान! दया करना।
30 जुलाई 02
आज रहम ने मुझे बस स्टॉप तक आने से मना कर दिया। हालाँकि वो यही दिखा रही थी कि अब वो बड़ी हो गयी है और बस तक अकेले जा सकती है पर उसके अंदर आये बदलाव को मैं देख रही हूँ। बस इसी का डर था मुझे।
26 मार्च 02
रहम अब 10 साल की हो गयी है और अपनी माँ से दूर, हॉस्टल में रहना चाहती है। सही भी है, अब उसे रोज़ रोज़ नए ताने नहीं सुनने होंगे अपने सहपाठियों से और वैसे भी इस शहर में इतने अच्छे स्कूल कहाँ है?
5 अप्रैल 02
अब घर काटने को दौड़ता है। अकेले रहा नहीं जाता। दिन तो काम के बोझ में निकल भी जाता है पर रातें नहीं कटतीं। मेरी बच्ची, तुम ठीक तो हो ना। माँ तुम्हें बहुत याद करती है।
10 अप्रैल 2010
स्कूल की पढ़ाई पूरी करके आज रहम वापस आ गयी है। अब हम माँ-बेटी खूब बातें करेंगे। इतने दिनों के बाद अब हम फिर से साथ रहेंगे।
15 अगस्त 10
रहम का दाख़िला यहीं के आई.आई.टी में हो गया है। उसकी ज़िद में मैंने हॉस्टल तो दिला दिया है पर वो हर हफ़्ते मुझसे मिलने आया करेगी।
30 नवम्बर 10
तीन महीने से ज्यादा समय हो गया पर रहम मुझसे मिलने नहीं आई। जब मैं जाती हूँ तब भी कोई न कोई बहाना मारकर आने से मना कर देती है।
क्या समाज की तरह मेरी बेटी भी मुझसे नफ़रत करती है? उसकी उपेक्षा नहीं झेल पाऊँगी मैं। हे इश्वर! अब आप ही कुछ रास्ता दिखाएं।
19 नवंबर 14
आज मेरी बेटी को नौकरी मिल गयी। सबसे ज़्यादा नंबरों से पास हुई है मेरी बेटी। मेरी तपस्या सफल हुई।
उसे दिल्ली में ही नौकरी भी मिल गयी है। अब सब दूरियाँ ख़त्म।
25 जुलाई 15
रहम बदल गयी है। गलती उसकी भी तो नहीं है। एक किन्नर की बेटी होना किसे पसंद है? शायद मेरी ही गलती है कि एक किन्नर होने के बाद भी मैंने उसे गोद लिया। कम से कम वो समाज में चल सकती थी बिना शर्मिंदगी के। मुझे माफ़ कर देना मेरी बच्ची।
27 फ़रवरी 16
रिश्तों की डोर टूट चुकी है। हफ़्तों हमारी बात नहीं होती।
उसके दोस्त जब घर आते हैं तो मैं कमरे से बाहर नहीं निकलती हूँ। उसने मना नहीं किया है पर मैं जानती हूँ उसे पसंद नहीं है मेरा उसके दोस्तों से मिलना।
शायद इसीलिए हमें समाज से अलग कर दिया जाता है। हे इश्वर, इस बार तो ये ज़िंदगी दी पर आगे कभी नहीं। और किसी चीज़ से शिकायत नहीं है मुझे पर अपनी रहम की अवहेलना नहीं झेल सकती मैं।
अभी कुछ ही दिनों पहले की थी वो आखिरी तारीख। शायद मेरी प्रमोशन की खुशी में जब दोस्त अचानक घर आ गये थे और माँ को बंद दरवाज़े के पीछे से ये खबर मिली थी। याद है मुझे उनकी वो मायूस आंखें। ग्लानि हो रही थी मुझे खुद से। क्या नहीं किया माँ ने और मैंने इस कदर तड़पाया उन्हें। कहने को माँ कहती रही पर सच तो यह है कि कभी माँ का दर्जा दिया ही नहीं मैंने उन्हें।

अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए उसी समय मैंने माँ से माफ़ी माँगने का निर्णय लिया। अब उन्हें दुनिया की हर ख़ुशी दूँगी। बिना किसी शर्त के प्यार किया था उन्होंने मुझे, उनके हर दुःख की दवा बनने का इरादा कर लिया था मैंने।
सुबह के 6 बज रहे थे। नाश्ते के साथ माफ़ी माँग लूँगी ये सोच कर मैं रसोईघर में जा कर नाश्ता तैयार करने लगी। सब कुछ 7 बजे तक नाश्ता तैयार करके, मैं माँ के कमरे में पहुँची। धीरे से दरवाज़ा खोलकर जैसे ही मैंने बत्ती जलाई तो वहीं निर्जीव सी खड़ी रह गयी मैं।
सामने माँ पँखें से लटकी हुई थीं। नहीं, ख़ुदकुशी नहीं, हत्या थी वो। मेरी उपेक्षा ने जान ले ली थी उनकी। अपनी माँ की हत्यारिन मैं ही तो थी।

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I met her 3 years ago. The way she laid her eyes on me, made me fall for her immediately. I couldn’t stop smiling looking at her and she doesn’t even smile back. But how cannot someone praise the beauty like her. Endearing and winsome she was. I see her every day and fall for her every single moment. I love everything about her. The way she moves her eyeballs capturing whole world inside them.  The way she laughs every time when I wink at her. The way she entwined her hands in mine.

I adore her at every moment and capture the candid pictures of her inside my camera. It would be a sin to miss any moment of her. This is what happens when you fall in love with someone unconditionally.

I talk her endlessly, detailing each and every moment happened throughout the day. She listens me patiently albeit her tired eyes speak otherwise. I must say, she is a good listener.

My every Sunday belongs to her. I don’t want to hang around with my friends anymore. I want myself around her 24*7. I love her making laugh and my ears feels at peace when I hear her laughing. She is the prettiest girl in the town. My girl.

Last night when I carried her around my arms, she kissed me for the first time. It was priceless as first kiss is always special. I didn’t ask for it. She kissed me deliberately. The moment her lips touched my cheeks, I realised how much she trusts me. That very moment, I promised to her that I will be the best man she would meet in her life.

As she had kissed me last night, I decided to take her for our first walk. To make the moment last forever, I bought her a beautiful gown and a beautiful pair of shoes. When I gifted the dress, her eyes lit up with excitement. She hugged me as if I had given her the most expensive gift ever.

She dolled herself with matching Bijouterie. She looked magnificent in royal blue gown which covered her from head to toe. As she made her way towards me, my heart bounced back thousand times within a second. I sat on my knees to welcome her. She came forward like a princess and kissed my right cheek and shouted in my ear, “Thank you so much Daddy.” I hugged her tight and tears rolled down from my eyes.

When I carried her in my arms, she braces my neck with her tiny hands. And we were finally out to experience our first ever walk together.

Sand, Footsteps, Footprints, Beach, Coast, Walk, Ocean

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