किस्सा एक लेखक का|





क्या लिखूँ आज ऐसा,
जो किसी ने ना लिखा हो?

क्या मेरे शब्द,
मेरे जज्बातों को बयां कर पाएंगे?

क्या किसी की आँखे,
इस स्याही में बसी ख़ामोशी को पढ़ पाएंगी?

क्या ये शब्दों से पिरोया हुआ पन्ना,
तालियों में तब्दील हो पायेगा?

क्या होगी इसमें बहस,
ये कहानी काल्पनिक है या हकीकत?

या किताबों के और पन्नो की तरह,
इसे भी अनदेखा कर दिया जायेगा|

क्या लिखूँ आज ऐसा,
जो किसी ने ना लिखा हो?























Image Credit: Pixabay.com

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