"माँ , बहुत भूख लगी है। खाने में क्या है ?"
"राजमा चावल" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
अपने पसंदीदा खाने का नाम सुनते ही शिखर का चेहरा खिल गया । खाना खाने के तुरंत बाद , वो थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , "माँ आपसे कुछ बात करनी है।"
उसका चेहरा देखते ही मैं समझ गयी कि वो कुछ ज़रूरी बात करना चाहता है। उसकी आँखों में आज कुछ अलग ही चमक थी। खैर, मैं उसके पास जाकर बैठी और पूछा की क्या बात है ?
मेरा हाथ पकड़ते हुए उसने कहा " माँ , मैं आर्मी में जाना चाहता हूँ। भले ही मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ पर इंजीनियरिंग करने को मेरा मन गवाही नहीं देता। "
ऐसा लगा जैसे पाँव तले ज़मीन खिसक गयी हो । जिसका डर था वही हुआ। है तो आखिर वो भी राहुल का ही खून।
"माँ ?? क्या हुआ? " शिखर की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी।
"कुछ नहीं बेटा । ठीक है। जैसा तुम ठीक समझो। मैं जानती हूँ तुम कुछ भी करो, अच्छा ही करोगे।" सिर्फ इतना ही कह पायी मैं।
शिखर के जाने के बाद मैं वहीँ बैठी रही। ऐसा लग रहा था मानो मेरे शरीर से आत्मा को अलग कर दिया हो। वो जख्म जो कभी ठीक से भरा ही नहीं, आज फिर से हरा हो गया। मेरे जीवन की त्रासदी ,आज फिर एक बार खुद को दोहराने को तैयार थी। और मैं आज भी उतनी ही बेबस थी।
आज से कुछ पंद्रह साल पहले इसी निर्णय ने मुझसे एक ऐसा इंसान छीन लिया था जिन्हें मैं जान से ज्यादा प्यार करती थी, मेरे पति राहुल। आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने अपनी जान गँवा दी थी।
आज भी वो पल अक्सर मेरी आँखों के सामने घूम जाता है जब राहुल तिरंगे में लिपटे घर आये थे। जो दुनिया कभी ठीक से बस ही नहीं पायी थी, एक पल में ही बिखर गयी थी। गौरवान्तित थी उनके अदम्य साहस पर, लेकिन पति खोने का ग़म मुझसे बरदाश्त नहीं हो रहा था। क्या पता था कि रिश्तों की डोर इतनी जल्दी टूट जाएगी। उनकी चिता उनके साहस की दास्तान सुना रही थी।वो धधकती आग , उनके अन्दर की देश भक्ति के जूनून को दरशा रही थी।
उस दिन के बाद मेरी ज़िन्दगी में फिर कभी सुबह ने दस्तक नहीं दी।
ना जाने क्यों आज फिर वही एहसास फिर से जाग उठा। शिखर के खातिर मैंने खुद को संभाले रखा पर एक पल नहीं गुज़रा जब मैंने राहुल को याद ना किया हो। राहुल का प्यार ही तो था जो मुझे आज तक शक्ति दे रहा था आगे बढ़ने की। अगर शिखर न होता,तो शायद ना जाने कब मैं अपनी ज़िन्दगी खत्म कर लेती।
शिखर राहुल का प्रतिबिंब ही तो था। हर पल शिखर में राहुल को जिया था मैंने। शिखर के निर्णय पर दुखी नहीं हूँ मैं पर डरती हूँ कहीं इतिहास खुद को दोहरा ना दे। शिखर के बिना जी नहीं पाऊँगी मैं।
आज नींद मुझसे कोसों दूर थी। करवटें बदलते हुए, मेरे कानों में शिखर के शब्द गूँज रहे थे। उसे अनुमति तो दे दी थी मैंने, पर अब अपने दिल को कैसे समझाऊँ ? बुरे ख्यालों ने मेरे दिमाग को घेर रखा था।
" राहुल, तुम ही बताओ मैं क्या करूँ? तुम क्या करते ?" मैं बेबस सी राहुल की तस्वीर से बात कर रही थी कि अचानक ऐसा लगा राहुल मुझे आवाज़ दे रहे हैं। उनकी आवाज ने ही तो मुझे आज तक हर असमंजस से निकला है।
"मीरा , घबराओ मत। तुमने आज तक सब अच्छे से किया है । कितनी कुशलता से तुमने हमारे शिखर को पाला है। शायद मैं भी इतना ना कर पाता , जितना तुमने अकेले किया है । तुम बहुत साहसी हो । जिस गरिमा और आत्म विश्वास के साथ तुमने अपनी ज़िन्दगी को जिया है, मुझे तुम पर गर्व है। जिन संस्कारों के साथ तुमने शिखर की परवरिश की है, मुझे गुरूर है उसपर।
मीरा, जैसे अभी तक तुमने सब कुछ संभाला है, आगे भी उसी धैर्य को बनाये रखो। मुझे शिखर के फैसले पर फ़क्र है।"
मेरे मन का संशय अब दूर हो रहा था। जो डर और अविश्वास का कोहरा मेरी ममता पर पड़ा था, वो अब छंट रहा था। मैं आज फिर गौरवान्तित थी अपने बेटे पर, अपनी परवरिश, अपने दिए संस्कारों पर । आज भले ही मैं एक माँ के तौर पर चैन से ना सो पाऊं पर एक भारतीय होने के नाते मैं चैन से सो सकती हूँ, इस यकीन से सो सकती हूँ की मेरा बेटा , सिर्फ मेरी ही नहीं बल्कि इस देश की हर माँ की रक्षा के लिए मुस्तैद है।
कल सुबह एक नयी ख़ुशी ले कर आएगा ।मैं तैयार हूँ इस सुबह के स्वागत के लिए और शिखर को ये बताने के लिए की मुझे उस पर गर्व है और उसके पापा को भी।
Image Credit: Pixabay.com
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