अधूरी कहानी

प्रेम की परकाष्ठा नहीं चाहिए थी हमें । महानता भी नहीं । हम तो छोटे लोग हैं। छोटे ख्व़ाब , छोटी ख़ुशियाँ , छोटी दुनिया । हमें भी बस अपनी एक छोटी सी दुनिया चाहिए थी । एक जहाँ , जहाँ हम सुकून से अपनी ज़िन्दगी बिताएं ।
हमारा प्रेम भी ऐसा कोई ख़ास नहीं था । हीर रांझा , लैला मजनूँ या रोमियो जूलिएट जैसी तो कोई बात नहीं थी हममें । हमने तो बस मोहब्बत की थी । सच्ची मोहब्बत। महानता जैसे शब्दों के चकल्लस से तो हम दूर ही रहना चाहते । हाँ , कुछ ऐसा रिश्ता था जैसे कलम का स्याही से , सागर का मछली से, बादल का बूंदों से जिसमें दूसरे के बगैर जीवन संभव तो था पर उसके कोई मायने नहीं थे । नितांत बेमानी सा जीवन।
कुछ 2 साल पहले मिले थे हम। जब उसे पहली बार देखा तो हवा नहीं चली थी , ना तो मेरे बाल ही अचानक उड़ने लगे थे , ना मन गुनगुनाया था ना ही गिटार बजे थे बस दिल धड़का था , थोड़ा तेज़ , एक सिरहन सी दौड़ गयी थी ज़िस्म में । हर मुलाक़ात के बाद धड़कन बढ़ती गयी । एक एहसास था ,एक मीठा सा दर्द जिसके बारे में अक्सर पढ़ा सुना तो था पर हमेशा अतिशोय्क्ति सा लगता था । पर आज मैं भी  इसे महसूस कर रही थी ।
नहीं , ये पहली नज़र का प्यार नहीं था । हमनें इसे हर घड़ी जिया था । ये कोई अचानक से उठने वाला सैलाब नहीं था , पर एक दरिया था जिसमें हम डूबे थे  हर पल ।
पर प्यार आसान कब रहा है ? काटों के बिस्तर से तो आप एक बार बिना चोट खाए निकल भी सकते हैं पर प्यार से ? सवाल ही नहीं उठता ।
हमारा अंतर्जातीय प्रेम हमारे समाज , हमारे गाँव,
हमारे परिवार की इच्छा ही नहीं , बल्कि संस्कारों के भी खिलाफ़ था । हमें हर 'तरीके' से समझाने के बाद भी जब हम नहीं माने , तो हमें जिंदा ज़मीन में दफना दिया गया ।
हमारा प्रेम इतना विशाल था कि इस श्रृष्टि में समा ही नहीं पाया । माना लोगों ने हमें नहीं अपनाया पर हमें इसका ग़म नहीं है , क्योंकि वो कभी हमारे प्रेम की गहनता को समझ ही नहीं पाए । वो नहीं समझ पाए की प्रीत को बांटना संभव नहीं ।
ख़ैर , हम अपनी छोटी सी दुनिया में खुश हैं । यहाँ ना कोई ज़ात है ना भेद भाव । सुकून है यहाँ की हर गली में । शायद लोग इसे जन्नत कहते हैं पर हमारे लिए तो यह हमारा छोटा सा प्यार का आशियाँ है ।

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