कुमकुम

टीका, हाँ ये माथे पे लगा लाल टीका ही तो है, मेरी पहचान| लोग इसे कुमकुम कहते है और ये एक औरत के भाग्य में उसके जन्म के साथ ही लिख के आता है| जब ये दो शब्द मिल जाते है, तो ये कुमकुम भाग्य कहलाता है|
रोज़ सुबह जब आईने में खुद को देखती हूँ, तो असमंजस में पड़ जाती हूँ| सोचती हूँ क्या इस लाल टीके जितना ही ख्वाब देखा था मैने अपने लिए| याद आता है वो दिन, जब पूरी दुनिया को अपनी मुटठी में करने की चाह रखती थी मैं, जब मैं अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती थी| और अब देखो, क्या है मेरा वजूद? सिर्फ इस लाल टीके की गोलाई जितना | हाँ, आज मैं किसी की बहु हूँ, किसी की पत्नी और दो पायरे प्यारे बच्चों की माँ भी हूँ| अब तो मेरा नाम भी कोई नहीं जानना चाहता, सिर्फ सरनेम से ही परख लेते है मुझे| सच, आसमान की तरह, किस्मत भी कितने रंग बदलती है|
किसी को मेरे आँखों में बसे अधूरे ख्वाब नहीं दिखते, न ही किसी को मेरे आंसुओं में भरे दर्द जानने की चाह है| इसलिए आँखों में काजल और होंठो में लाली लगाकर अपने अस्तित्व को और दबा लेती हूँ, ताकि में खुद ही खुदको न पहचान सकूं|
परदे के पीछे से जब भी बाहरी दुनिया को देखती हूँ, तो लगता है आज, इसी वक़्त सारी बेड़ियाँ तोड़ कर बाहरी दुनिया में शरीक हो जाऊं, और जो टूटे हुए सपने है उन्हें बुन लूं|
जैसे  ही मेरे कदम आगे बढ़ते है, मुझे बहुत कुछ रोक लेता है| हाँ, मेरे ससुर की ‘खांसी’ मुझे रोक लेती है, मेरे पति का का ‘प्यार’ मुझे रोक लेता है, मेरे बच्चों का ‘माँ’ बुलाना मुझे रोक लेता है| सोचती हूँ, इनसे बिछड़ के अगर पहचान बना भी ली, तो क्या मिलेगा मुझे? शायद सिर्फ अकेलापन | आखिर, ऊंचाई में इन्सान अकेले ही तो खड़ा होता है|
बस फिर क्या, अपना बढ़ा हुआ कदम वापस से अन्दर लेती हूँ| खिड़की, दरवाजे बंद करती हूँ और सोचती हूँ, परदे के पीछे से बाहरी दुनिया को देखना ही बेहतर है| मैं परदे के इस पार की दुनिया में ही ठीक हूँ, आखिर इस आशियाने को मैंने अपने दिल के तारों से बुना है|

Share this:

ABOUT THE AUTHOR

The Indelible nib- It is not just a blog but a diary of untold stories. We believe everyone of us has a story to tell and it must be put in words. If you have such stories, please mail us at prerikakanchan@gmail.com.

0 comments:

Post a Comment